सुप्रीम कोर्ट ने आज असम में अवैध घुसपैठ और नागरिकता के मुद्दे पर असम की लंबे समय से चली आ रही राजनीति को बड़ा झटका दिया। नागरिकता संशोधन कानून (CCA) की संवैधानिकता और अनुच्छेद 6A पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने असम में अवैध घुसपैठ को लेकर हो रही राजनीति पर कड़ी टिप्पणी की. कोर्ट के इस फैसले से न सिर्फ असम की राजनीति बल्कि देशभर में नागरिकता को लेकर चल रही बहस पर भी असर पड़ने की संभावना है.
असम में अवैध घुसपैठ और सेक्शन 6A: क्यों है इतना बड़ा मुद्दा?
असम में बांग्लादेश से अवैध घुसपैठ का मुद्दा दशकों से विवाद का केंद्र रहा है। 1985 में हुए असम समझौते के बाद से ही इस मुद्दे को लेकर कई बार राजनीतिक उथल-पुथल मची है। असम समझौते के अनुसार, 25 मार्च 1971 से पहले आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है, जिसे नागरिकता कानून (Citizenship Act) के सेक्शन 6A में शामिल किया गया। लेकिन असम के कई संगठन इस कट-ऑफ डेट को मानने से इनकार करते हुए 1951 को नागरिकता का आधार मानने की मांग कर रहे हैं।
सितंबर 2024 में असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 1951 को नागरिकता का आधार मानने वाले सुझावों को मंजूरी दी थी, जिससे इस मुद्दे पर राजनीति और भी गरमा गई। इसी के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने 1955 के नागरिकता कानून के सेक्शन 6A को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला: अवैध घुसपैठ पर कड़ी टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में चार जजों की सहमति से सेक्शन 6A को संवैधानिक ठहराया। इस फैसले में कोर्ट ने कहा कि अवैध प्रवासियों की संख्या और डेमोग्राफी में बदलाव के आधार पर किसी समुदाय के अधिकारों का हनन नहीं माना जा सकता। यह एक ऐतिहासिक फैसला है जो असम के साथ-साथ देशभर में नागरिकता और प्रवासियों के मुद्दों पर चल रही बहस पर असर डालेगा।
1951 बनाम 1971: क्या है विवाद?
1951 और 1971 की कट-ऑफ डेट को लेकर असम में लंबे समय से विवाद जारी है। असम के कई संगठन 1951 को नागरिकता का आधार मानने की वकालत कर रहे हैं, जबकि असम समझौते के तहत 1971 की तारीख निर्धारित की गई है। असम सम्मिलिता महासंघ और अन्य संगठनों ने 6A की संवैधानिकता को चुनौती दी थी, जिसमें उनका दावा था कि 1971 को कट-ऑफ मानना असम की स्थानीय संस्कृति, भाषा और जनसांख्यिकी के लिए खतरा है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज करते हुए कहा कि 1971 की तारीख को बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के इतिहास और प्रवासियों की संख्या को ध्यान में रखकर चुना गया था, जो उचित है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि केवल डेमोग्राफिक बदलाव को आधार बनाकर किसी समुदाय के अधिकारों पर खतरे का दावा नहीं किया जा सकता।
राजनीतिक नतीजे: भाजपा और अन्य पार्टियों पर क्या असर पड़ेगा?
असम में भाजपा की राजनीति लंबे समय से अवैध घुसपैठियों के मुद्दे के इर्द-गिर्द घूम रही है। मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने 1951 को नागरिकता का आधार मानते हुए कई योजनाएं शुरू की थीं, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद इन योजनाओं की वैधानिकता पर सवाल उठ सकते हैं।
भाजपा के लिए यह फैसला एक बड़ा झटका साबित हो सकता है, क्योंकि अवैध घुसपैठियों का मुद्दा उनकी चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा रहा है। इस फैसले से यह साफ हो गया है कि 1971 की तारीख को ही कट-ऑफ माना जाएगा, और इससे पहले आए प्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिलती रहेगी। इससे असम की राजनीति में एक नई दिशा देखने को मिल सकती है।
भाईचारे और भाईचारे की भावना: कोर्ट का स्पष्ट संकेत
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में नागरिकता के मुद्दे पर भाईचारे और भाईचारे का महत्व बताया। चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत जैसे विविधताओं वाले देश में अलग-अलग पृष्ठभूमि से आए लोगों के साथ मिलजुल कर रहना ही भाईचारे की सच्ची परिभाषा है। कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी राज्य में केवल विभिन्न जातीय समूहों की उपस्थिति से स्थानीय संस्कृति और भाषा को खतरा नहीं माना जा सकता।
कोर्ट के इस संदेश का असर सिर्फ असम तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे देश में नागरिकता और प्रवासियों को लेकर चल रही बहस पर भी लागू होगा।
आगे क्या?
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से असम के संगठनों में मतभेद देखने को मिल रहा है। असम समझौते के समर्थकों ने इसे एक ऐतिहासिक जीत बताया है, जबकि सेक्शन 6A को चुनौती देने वाले संगठन इस फैसले से निराश हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा और असम की सरकार इस फैसले का कैसे सामना करती है, और क्या 1951 की मांग पर कोई नया कदम उठाया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने भले ही सेक्शन 6A को संवैधानिक ठहराया हो, लेकिन असम में अवैध प्रवासियों को चिन्हित करने की प्रक्रिया अभी भी जारी है। आने वाले समय में यह देखा जाएगा कि इस फैसले का असम की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति पर क्या असर पड़ता है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला असम की राजनीति और नागरिकता के मुद्दे पर एक बड़ा मील का पत्थर साबित हो सकता है। जहां एक ओर यह फैसला अवैध घुसपैठियों पर राजनीति करने वालों के लिए एक कड़ा संदेश है, वहीं दूसरी ओर यह नागरिकता के मुद्दे पर स्पष्टता लाता है। अब देखने वाली बात यह होगी कि इस फैसले के बाद असम और देशभर की राजनीति किस दिशा में आगे बढ़ती है।
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