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शिक्षा में क्यों पीछे रह गया भारत? BREAKING

कैसे चीन की शिक्षा और स्किल्स ट्रेनिंग में भारत से आगे है, और इसका असर छात्रों की कमाई पर पड़ता है

Tafseel Ahmad
5 Min Read
Highlights
  • चीन का स्किल्स ट्रेनिंग पर जोर: चीन में उच्च माध्यमिक स्कूलों के 25% छात्र वोकेशनल ट्रेनिंग लेते हैं, जबकि भारत में यह संख्या मात्र 2% है।
  • अच्छे संस्थानों की कमी का असर: भारत में ज्यादातर छात्रों को उच्च गुणवत्ता की शिक्षा नहीं मिलती, जिससे उनकी कमाई और करियर पर बुरा असर पड़ता है।
  • रिसर्च का निष्कर्ष: 120 साल के डेटा से यह समझ में आया कि चीन के शिक्षण संस्थानों की गुणवत्ता बेहतर होती जा रही है, जबकि भारत में सुधार बहुत धीमा है।
  • मेडिकल और इंजीनियरिंग शिक्षा का फर्क: चीन में डॉक्टरों और इंजीनियरों की संख्या अधिक है, जबकि भारत में मानविकी के छात्रों का प्रतिशत ज्यादा है, जिससे रोजगार के अवसर सीमित हो जाते हैं।

चीन और भारत की शिक्षा में बड़ा अंतर: एक शोध की रोचक जानकारियाँ

हाल ही में एक शोध पत्र ने भारत और चीन के शिक्षा व्यवस्था में बड़ी खाई को उजागर किया है। इस शोध में दोनों देशों के पिछले 120 सालों के आंकड़ों का विश्लेषण कर यह पता लगाने का प्रयास किया गया कि कैसे शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण में चीन, भारत से आगे निकल गया है। पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के वर्ल्ड इनिक्वालिटी लैब के अर्थशास्त्री थॉमस पिकेटी के साथ मिलकर नितिन कुमार भारती और ली यंग ने इस शोध को अंजाम दिया है। इस शोध का मुख्य फोकस इस बात पर है कि कैसे शिक्षा की गुणवत्ता का असर युवाओं की कमाई और आर्थिक असमानता पर पड़ता है।

शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण में अंतर

शोध से पता चलता है कि चीन ने शिक्षा में निचले स्तर पर सुधार पर अधिक ध्यान दिया है। इसके विपरीत, भारत में केवल उच्च संस्थानों पर ही जोर दिया गया है। चीन में माध्यमिक स्तर पर छात्रों को व्यावसायिक प्रशिक्षण (वोकेशनल ट्रेनिंग) दी जाती है, जबकि भारत में इस पर ध्यान नहीं दिया गया। चीन में उच्च माध्यमिक विद्यालयों में 25% छात्र वोकेशनल ट्रेनिंग प्राप्त कर रहे हैं, जबकि भारत में यह आंकड़ा केवल 2% है। इसका असर यह है कि चीन के श्रमिक अधिक कौशलयुक्त और मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।

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शिक्षा गुणवत्ता और रोजगार

भारतीय संस्थानों में जहां कुछ गिने-चुने कॉलेज और विश्वविद्यालय उच्च गुणवत्ता के हैं, वहीं बड़ी संख्या में संस्थानों की स्थिति खराब है। इस कारण यहां से पढ़कर निकले छात्रों को रोजगार के स्तर पर संघर्ष करना पड़ता है। इसके विपरीत, चीन के अधिकांश संस्थान बेहतर हैं, और वहां से निकले छात्र आसानी से उच्च वेतन वाली नौकरियां प्राप्त कर लेते हैं। 2017 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 95% इंजीनियर नौकरी के लिए अयोग्य माने जाते हैं, जबकि चीन में इंजीनियरिंग के क्षेत्र में अच्छी गुणवत्ता के छात्रों का उत्पादन होता है।

सरकारी नीति और प्राथमिकता

भारत में सरकार ने शिक्षा क्षेत्र में कई योजनाएं शुरू कीं, लेकिन उनके अपेक्षित परिणाम नहीं मिल सके। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने “मेक इन इंडिया” का सपना तो देखा, लेकिन खराब गुणवत्ता वाले इंजीनियरिंग कॉलेजों और अपर्याप्त स्किल ट्रेनिंग ने इसे साकार होने में बाधा डाली। इसके विपरीत, चीन ने अपने संस्थानों को ग्लोबल स्तर पर पहुंचाने का लक्ष्य रखा और 2024 तक उनके 13 विश्वविद्यालय दुनिया की शीर्ष 100 में स्थान पा चुके हैं। भारत में इस तरह का कोई संस्थान इस सूची में शामिल नहीं हो सका।

आर्थिक असमानता और शिक्षा की स्थिति

भारत में आर्थिक असमानता भी शिक्षा व्यवस्था का एक बड़ा परिणाम है। खराब संस्थानों से पढ़कर निकले युवाओं को अच्छी नौकरी नहीं मिलती, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार नहीं हो पाता। गांवों और छोटे शहरों में सरकारी और निजी स्कूलों का स्तर भी गिरता जा रहा है। एक सर्वे के अनुसार, भारत के ग्रामीण इलाकों में आधे से ज्यादा बच्चे अपनी मातृभाषा में सरल पैराग्राफ पढ़ने में भी असमर्थ हैं। यह स्थिति न केवल छात्रों की प्रगति को रोकती है, बल्कि रोजगार और आर्थिक विकास के रास्ते भी बंद कर देती है।

भारत और चीन

भारत और चीन की शिक्षा प्रणाली में यह फर्क दोनों देशों की आर्थिक स्थिति और वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर भी असर डाल रहा है। जहां चीन की शिक्षा नीति का मुख्य उद्देश्य कौशल निर्माण है, वहीं भारत की शिक्षा व्यवस्था में प्राथमिक और माध्यमिक स्तर पर सुधार की कमी है। यदि भारत को वैश्विक स्तर पर अपनी स्थिति सुधारनी है, तो उसे उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और कौशल प्रशिक्षण पर अधिक ध्यान देना होगा।

नोट: यह शोध हमें बताता है कि भारत को अपनी शिक्षा नीति में व्यापक बदलाव की जरूरत है ताकि युवा केवल साक्षर न बनें, बल्कि उन्हें रोजगार योग्य कौशल भी मिले।

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