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Rolls Royce : कैसे एक ग़रीब लड़के ने बनाई Rolls Royce

Hasan Khan
17 Min Read

Rolls Royce : रोल्स रॉयस दुनिया की सबसे महंगी कारें बनाती है। दुनिया के अमीर लोग इन्हें ख़रीदने के सपने देखते हैं। इसी शानदार रोल्स रॉयस की कहानी की शुरुआत हुई थी। 1900 हुई

एक एसे लड़के की कहानी है, जिसका.पूरा बचपन.गरीबी में चाइल्ड लेबर करते हुए निकला है हेनरी रॉयस जिसका जन्म इंग्लैंड के एक छोटे से गांव में एक ग़रीब परिवार मे हुआ था। जब वह चार साल के थे उसके परिवार का व्यापार बिगड़ गया था । ओर परिवार सड़क पर आ गया था ।

नौ साल की उम्र में, उसके पिता की मृत्यु के बाद, उसने परिवार के लिए काम करना शुरू किया। उसने अख़बार बाँटना शुरू किया। ज़िन्दगी का एक महत्वपूर्ण मोड़ आया जब उसकी एक आंटी ने उसकी ने उसकी काबिलियत को देखा। ओर ग्रेट उत्तरी रेल्वे की वर्क्शाप मे उसकी नोकरी लगवा दी वह ग्रेट नॉर्डर्न रेलवे में जा पहुंचा और अपरेंटिस के रूप में काम करने लगा।

तीन साल में, उसने बहुत मेहनत करके अपनी क्षमताओं को साबित किया। उसने बहुत सी किताबें पढ़ीं और कारपेंट्री का काम सीखा। उसने मैथ्स और इलेक्ट्रॉनिक्स को भी सीखा। अब वो एक काबिल मैकेनिक बन गया बन गया था जो किसी भी तरह का काम कर सकता था ।

रॉयस 21 तक कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम किया

उसने इक्कीस साल तक मैक्सिमम वेस्टर्न नाम की कंपनी में इंजीनियर के रूप में काम किया। लेकिन कुछ फाइनेंशियल मुद्दों के कारण वह कंपनी बंद हो रही थी। इस समय उनके पास कई अन्य कंपनियों में नौकरी करने का ऑप्शन था, लेकिन उन्होंने अपनी खुद की इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग कंपनी शुरू करने का निर्णय लिया।

उन्होंने अपनी बची हुई सेविंग्स का उपयोग कर मैंचेस्टर में एक छोटे से ऑफिस से इस कंपनी की शुरुआत की। उन्होंने अपने दोस्त से साझेदारी भी की। शुरू में वे सभी प्रकार के काम करते थे, जैसे स्विंग मशीन रिपेयर, इलेक्ट्रिकल फिटिंग्स, और अन्य।

धीरे-धीरे उन्होंने देखा कि इलेक्ट्रिकल लाइटिंग्स और फिटिंग्स की मांग बढ़ रही है। इसलिए उन्होंने आर क्लैंप्स, बल्ब होल्डर्स, और इलेक्ट्रॉनिक डोर बल्कि जैसे उत्पादों का निर्माण शुरू किया। इसी कारण उनकी कंपनी का भाग्य बदल गया।

कैसे हुई Rolls Royce की शुरुआत

कंपनी की बिक्री बीस हज़ार करोड़ रुपये को पार कर गई थी। 38 की उम्र मे रॉयस के पास एक बड़े प्लांट बिल्ड करने का प्लान था और सब कुछ अच्छे से चल रहा था। लेकिन तब एक टेस्ट आता है। एक हज़ार नौ, जर्मन और अमेरिकन कंपनियां ब्रिटिश इलेक्ट्रॉनिक्स मार्केट में प्रवेश कर लेती हैं। competetion तेजी से बढ़ती है और इलेक्ट्रॉनिक इक्विपमेंट के रेटों में कमी आती है।

पूरी कोशिश के बावजूद, रॉयस का व्यापार क्रैश होने लगा और इसे देख कर रॉयस की शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य तेजी से खराब होने लगा। जब रॉयस ने डॉक्टर से सलाह ली, उन्हें एक सरल सलाह मिली – ठीक होने के लिए रॉयल्स को ताजगी बनाए रखने की जरूरत थी। उसके साथ ही उन्हें एक कार खरीदने की सलाह भी दी गई, ताकि वे बिना किसी तनाव के सफर कर सकें।

रॉयल्स ने एक छुट्टी ली, अपनी ताजगी बहाल की और फिर एक फ्रेंच मेड कार डेकोविल खरीदी। यह कार बहुत आकर्षक थी, लेकिन इसमें ब्रेकिंग इफेक्टिव होने में समस्या थी और ओवर हीटिंग भी होती थी। हेनरी जैसे परिपक्वतावादी व्यक्ति के लिए यह कार बिल्कुल भी ठीक नहीं थी। इसलिए उन्होंने निर्णय लिया कि वे इस कार में छोटी मोडिफिकेशन करेंगे। लेकिन बिना जाने-अनजाने, उन्होंने पूरी तरह से इस कार का डिज़ाइन दोबारा डिजाइन कर दिया। यह दोबारा डिजाइनy ओरिजिनल डेकोविल कार से कहीं बेहतर था और यहीं से रॉयस को आत्मविश्वास मिला कि वे खुद की कार बना सकते हैं और एक कार के व्यापार को भी शुरू कर सकते हैं।

उन्होंने एक छोटी सी टीम बनाई और अपनी नई कार का डिज़ाइन करने का काम शुरू किया। सभी पार्ट्स के ड्राइंग पूरी होने के बाद, उन्होंने वर्कशॉप में कास्टिंग करवाया। धीरे-धीरे रॉयल्स ने एक दस हॉर्सपावर और दो सिलेंडर वाली एक कार का शेप लेने लगा और इस कार में हर मौजूदा वाहन से बेहतरता को ध्यान में रखते हुए, उसे इम्प्रूव करने का काम किया। कर को पहले रोड टेस्ट किया गया और उसकी पहली टेस्ट में वह करीब पचास किलोमीटर की दूरी तय कर ली। बिना किसी समस्या के, रॉयल्स ने दो और कारों का मॉडल बनवाया और उन्हें टेस्ट करके उन्हें और बेहतर बनाने का काम किया। अब उन्होंने वर्ल्ड क्लास कार बना ली थी, लेकिन वे अकेले इसे पूरी दुनिया तक पहुंचा नहीं सकते थे।

जब हुई चार्ल्स रोल्स मार्केट मे एंट्री

और ऐसे में एंट्री होती है कहानी के दूसरे हीरो की. चार्ल्स रोल्स , रॉयस एग्जिबिशन में अपनी कार्स को लेकर जाते है ओर यही चार्ल्स रोल्स की नजर पहली बार रॉयस की कार पर पढ़ती है . चार्ल्स रोल्स एक पैशनेट मोटवेटर थे और सुपीरियर क्वालिटी की कार्स का सक्सेसफुल बिजनेस करते थे.

रोल्स ऑलरेडी एक लग्जरी ब्रिटिश कार मेकर को ढूंढ रहे थे इसीलिए उन्होंने रॉयस से मुलाकात की और कार्स को क्लोजली देखा. वो रॉयस से इतना इंप्रेस हुए की बाद में उन्होंने अपने एक बिजनेस पार्टनर से कहा कि उन्होंने वर्ल्ड के ग्रेटेस्ट इंजीनियर को ढूंढ लिया है. अगले तीन महीना में इन कार्स को बेचने के लिए चार्ल्स रोल्स और हेनरी रॉयस एक जॉइंट वेंचर स्टार्ट करने का एग्रीमेंट करते हैं और इस जॉइंट वेंचर से बिकने वाली कार्स का नाम होने वाला था – Rolls-Royce.

मार्च 1906 में रोल्स-रॉयस लिमिटेड को आधिकारिक रूप से स्थापित किया गया और सबसे पहले चार रोल्स-रॉयस एक-पांच, बीस और तीस हॉर्सपावर वाली मॉडल को सप्लाई करने का निर्णय लिया गया। रोल्स का मानना था कि किसी भी कार का सबसे अच्छा मार्केटिंग करने का तरीका उस कार के साथ रेसिंग टूर्नामेंट में उतारना । इसलिए रोल्स ने आईल ऑफ मैन, टूरिस्ट ट्रॉफी जैसे फेमस टूर्नामेंट में हिस्सा लिया और रोल्स-रॉयस की कार का उपयोग करके उन रेसों को जीता। साथ ही, उन्होंने इनमें से कई नए स्पीड रिकॉर्ड भी बनाए। इस प्रकार, रोल्स-रॉयस ऑलरेडी एक ग्रेट कार कंपनी की तरह स्थापित हो चुकी थी, लेकिन अब उनकी सबसे सक्सेसफुल कार का आगाज बाकी था।

जब Rolls Royce ने बनाई सबसे फेमस कार

इसी बीच, एक छह सीटर रॉयस सिल्वर घोस्ट ने एक्सपेरिमेंटल पावर और एक्सिल रोल्स रॉय्स कंपनी ने अपनी कार, सिल्वर घोस्ट, को मार्केट करने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए। इसमें चौबीस हजार किलोमीटर का एक इंडिया टेस्ट प्लान शामिल था, जिसमें कार को ढाई महीने तक दिन-रात चलाया गया। इस टेस्ट में कार ने 24,000 किलोमीटर का डिस्टेंस कवर किया, और इसके बिना किसी इश्यू के पास हो गया। इसके अतिरिक्त, उन्होंने कई डेमोंस्ट्रेशन भी आयोजित किए, जिसमें कार की विभिन्न विशेषताओं को प्रदर्शित किया गया। इन डेमोंस्ट्रेशन में एक विशेष टेस्ट शामिल था, जिसमें कार के बोनट पर एक कॉइन को बैलेंस करते हुए उसे बिना गिराए चलाया गया, जिससे दर्शाया गया कि कार की स्मूथनेस और स्टेबिलिटी कितनी अच्छी है।

इन सभी प्रयासों और टेस्टिंग के फलस्वरूप, सिल्वर घोस्ट ने बाजार में अपनी पहचान बना ली और लोकप्रियता हासिल की। इससे रोल्स रॉयस कंपनी ने अपने प्रोडक्टस को सफलतापूर्वक बेचने में कामयाबी प्राप्त की।

रॉयस कंपनी और उसके सिल्वर घोस्ट कार के साथ आने वाली समस्याओं के बावजूद, उसकी पॉपुलरिटी बढ़ी और इसे इंडस्ट्री के नेताओं और राजा-महाराजों की पसंदीदा कार बना दिया। रोल्स रॉयस की पार्टनरशिप का डिसीजन बड़ा मास्टर स्ट्रोक साबित हुआ और उन्हें हर तरफ से सफलता मिल रही थी।

चार्ल्स रोल्स की अचानक हुई Death

लेकिन, एक भयानक हादसे ने रोल्स रॉयस के लिए एक बड़ा बदलाव ला दिया। चार्ल्स रोल्स, जिन्हें एविएशन में भी बहुत रुचि थी, एक फ्लाइट के दौरान एक्सीडेंट में जान गंवा दिया। इस हादसे से उनकी मृत्यु हो गई, और वे ब्रिटेन के पहले इंसान बने जिन्होंने एक एयरप्लेन एक्सीडेंट में अपनी जान गंवाई।

इसके बाद, रॉयस बिमार हो गए और उन्हें बोन कैंसर का सामना करना पड़ा। उन्हें मेजर ऑपरेशन के बाद भी तीन महीने ही जीने की संभावना बताई गई। हालांकि, एक मिरेकल जगा और उन्होंने अपनी स्वास्थ्य को पूरी तरह से बहाल किया।

रॉयस ने वापस आकर सिल्वर घोस्ट को और भी बेहतर बनाने के लिए काम किया। उन्होंने इसकी ग्राउंड क्लियरेंस में मेजर इम्प्रूवमेंट किया, सस्पेंशन को बेहतर बनाया और इसे और भी शक्तिशाली बनाया। इसी दौरान, उन्होंने देखा कि लोग कार के बोनट पर पर्सनलाइज्ड कोट लगाने के लिए एक नया ट्रेंड शुरू हो रहा है, लेकिन इससे कंपनी की इमेज पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, उन्होंने अपना ही मास्कट डिजाइन करवाया, जिसमें ब्रिटिश एक्ट्रेस और मॉडलों का उपयोग किया गया, जो इसे स्वतंत्रता, गोरखा और गति का प्रतीक साबित करते हैं।

जब बंद होने की कगार पर थी Rolls Royce

वार्ल्ड वॉर एक ने रोल्स रॉयस को एक बड़ी चुनौती दी, जिसने उनकी लग्जरी कार कंपनी पर गंभीर असर डाला। इसके परिणामस्वरूप, उनकी सेल्स में गिरावट हुई और कंपनी को अपने एम्प्लाइज को भी फायर करना पड़ा। यह इकनॉमी क्रैश ने बहुत सारी कंपनियों को प्रभावित किया था, लेकिन रोल्स रॉयस इसमें अधिक प्रभावित हुए क्योंकि उनकी कारें विशेष रूप से उन ग्राहकों के लिए थीं जो अधिकतम अमीरी को प्रतिनिधित्व करते थे।

यह युद्ध अवधि में बड़ी उर्जाएं चाहिए और वाहनों के लिए विशेष अनुमति की आवश्यकता थी, जो रोल्स रॉयस की विशिष्ट अनुसंधान और विकास प्रक्रिया के लिए आवश्यक नहीं थी। इसलिए, कंपनी को इस समय में वैसी ही चुनौतियों का सामना करना पड़ा जैसा कि अन्य उद्योगों ने किया।

ओर Rolls Royce की हुई वर्ल्ड वार 1 मे एंट्री

इस दौरान, जब रोल्स रॉयस को एक नई परिस्थिति का सामना करना पड़ा, तो रॉयस ने मिलिट्री अथॉरिटी से एक साझेदारी की प्रस्तावित की। इसका मकसद यह था कि कंपनी मिलिट्री उपयोग के लिए वाहन और उपकरण विकसित कर सके और इससे नए आयाम में प्रवेश कर सके। इस साझेदारी की बात ने रोल्स रॉयस की बाजार में स्थिति को सुधारने में मदद की और उन्हें एक नई दिशा देने में मदद की, जिससे वे अपनी शानदार इमेज को बरकरार रख सकें।

मीटिंग के बाद रोल्स रॉयस को यह अनुभव हुआ कि युद्ध में विश्वसनीय और ऊंची प्रदर्शन वाली गाड़ियों की आवश्यकता है। इसलिए उन्होंने सिल्वर घोस्ट को एक आर्मर्ड कार में बदल दिया। कार की बॉडी में 8 मिलीमीटर का आर्मोर लगाया गया, साथ ही एक रिवाल्विंग टरेट में एक मशीन गन भी फिट की गई। इस कार को मध्य पूर्व के हमलों में ऑपरेशंस कंडक्ट करने के लिए उपयोग किया गया। इसके अतिरिक्त, इसे स्पाइंग मिशंस के लिए भी उपयोग किया गया, और क्योंकि सिल्वर घोस्ट चलाने में बहुत ही स्मूद थी, इसलिए यह अचानक चुनौती को संभाल सकती थी।

इसी के साथ, कई सिल्वर घोस्ट को वाहन एम्बुलेंस की तरह मॉडिफाई किया गया था ताकि वे सैनिकों को ले जाने में उत्तम हों। इनमें स्ट्रेचर्स, मेडिकल इक्विपमेंट्स और नर्सेज के लिए पर्याप्त स्थान उपलब्ध था, और नाइट टाइम मिशंस के लिए इलेक्ट्रिक लाइटिंग भी फिट की गई थी। इन एम्बुलेंसों ने हजारों जिंदगियों को बचाया।

अंततः, इन कारों के लग्जरी फीचर्स के कारण और उनके योग्यता के दौरान, रोल्स रॉयस की कारों का कोर विकसित हुआ।

जब Rolls Royce ने मार्केट मे की धमाकेदार वापसी

उच्च-श्रेणी के अधिकारियों और राजनयिकों द्वारा पसंद की जाने वाली कंपनी रोल्स-रॉयस ने शुरुआत में कारों के साथ-साथ विमानों के लिए भी इंजन नहीं बनाती थी. सैन्य सहयोग के दौरान उन्हें पता चला कि ब्रिटिश वायुसेना फ्रांसीसी कंपनियों पर निर्भर है. इस मौके को भुनाते हुए 1905 में उन्होंने अपना पहला विमान इंजन बनाया. ये इंजन प्रतिस्पर्धा से अधिक भरोसेमंद, हल्के और कम ईंधन जलाने वाले थे, जिससे ब्रिटिश वायुसेना ने साल के अंत तक 500 इंजन मंगवा लिए. बाद में उन्होंने हल्के विमानों के लिए हॉक इंजन (1918), ईगल इंजन का छोटा संस्करण फाल्कन इंजन (1916) और बड़े विमानों के लिए कोंडोर इंजन (1926) बनाए. इन शानदार इंजनों की बदौलत ब्रिटेन को युद्धों में काफी फायदा मिला. रोल्स-रॉयस का ये कदम बहुत सफल रहा और आज भी हजारों विमानों में उनके इंजन लगे होते हैं. गौरतलब है कि अगले 15 साल उन्होंने कारों पर भी ध्यान दिया और 20 से अधिक कार मॉडल लॉन्च किए.

Rolls Royce : लग्जरी कारों का राजा

1925 तक लग्जरी कार बाजार में बेंटले, डेल और कैडिलैक जैसी कंपनियों के आने से रोल्स-रॉयस पर दबाव बढ़ गया था. अपनी स्थिति बनाए रखने के लिए उन्हें एक बेहतरीन कार की जरूरत थी.

इसलिए उन्होंने सिल्वर गोस्ट को बेहतर प्रदर्शन और चार पहियों पर ब्रेक के साथ बदलते हुए फैंटम लॉन्च की. नया फैंटम बहुत सफल रहा और रोल्स-रॉयस को फिर से लग्जरी कार बाजार का राजा बना दिया.

इसके बाद फैंटम टू भी लॉन्च की गई जो उतनी ही लोकप्रिय हुई. 1931 में रोल्स-रॉयस ने बेंटले का अधिग्रहण किया और फिर डिजाइन की एक और शानदार कार बनाई, बेंटले थ्री.

हालांकि, बेंटले और रोल्स-रॉयस के बीच यह सफल गठबंधन दुर्भाग्यपूर्ण था क्योंकि सर हेनरी रॉयस कभी भी इस कार को देख नहीं पाए. अप्रैल 1933 में 70 साल की उम्र में उनका निधन हो गया.

सर हेनरी रॉयस की मृत्यु के कुछ ही महीने बाद कार का उत्पादन शुरू हुआ. आज तक रोल्स-रॉयस ने कई उतार-चढ़ाव देखे हैं.

एक तरफ उन्होंने फैंटम थ्री, सिल्वर शैडो और घोस्ट जैसी शानदार कारों को लॉन्च किया, वहीं दूसरी तरफ 1960 में उन्हें वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ा जिसके कारण उनके इंजीनियरिंग और ऑटोमोबाइल व्यवसाय को अलग कर दिया गया.

अब रोल्स-रॉयस मोटर्स का मालिक बीएमडब्ल्यू है, लेकिन आज भी रोल्स-रॉयस अपनी शानदार कारों के कारण अल्टीमेट लग्जरी का सबसे बड़ा प्रतीक है.

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