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नूपुर की ज़हर और झूठ से वापसी: विदेश में न पढ़ने का धनकड़ का चौकाने वाला बयान!

नूपुर की माफी ने खोली नई बहस: धनकड़ का बयान सबको चौंका गया!

Tafseel Ahmad
6 Min Read
नूपुर की वापसी के पीछे की सच्चाई: क्या यह ज़हर और झूठ का खेल है?
Highlights
  • नूपुर का विवादित बयान: नूपुर ने विदेश में पढ़ाई न करने के बारे में धनकड़ के बयान को लेकर अपनी बात रखी।
  • सच्चाई का सामना: ज़हर और झूठ के आरोपों के बीच नूपुर ने कैसे किया माफी का प्रयास।
  • धनकड़ का चौकाने वाला खुलासा: जानें धनकड़ ने क्या कहा और इसके पीछे की कहानी।
  • प्रतिक्रिया और बहस: सोशल मीडिया और राजनीतिक मंचों पर इस बयान पर जनता की प्रतिक्रियाएँ।

नूपुर: मैं आपके सामने भारत के उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ द्वारा दिए गए एक विवादास्पद बयान पर चर्चा करूंगा। यह बयान उन भारतीय छात्रों के विदेश में पढ़ाई करने से जुड़ा है। उपराष्ट्रपति ने कहा है कि छात्रों को विदेश जाकर पढ़ाई करने की “नई बीमारी” लग गई है, जो कई लोगों के बीच बहस का कारण बन गया है। खास बात यह है कि उपराष्ट्रपति का यह बयान ऐसे समय में आया है जब उनके खुद के बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं।

नूपुर की ज़हर और झूठ से वापसी

उपराष्ट्रपति का यह बयान भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेताओं और उनके परिवारों पर सवाल खड़ा करता है। कई प्रमुख BJP नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ाई करते हैं, लेकिन वहीं, आम भारतीयों के बच्चों को यह सलाह दी जा रही है कि वे विदेश न जाएं। अनुराग ठाकुर, रवि किशन, निशिकांत दुबे, रवि शंकर प्रसाद, और शिवराज सिंह चौहान जैसे नेताओं के बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं और वहां नौकरी भी कर सकते हैं, लेकिन आम भारतीयों के बच्चों को ऐसे अवसरों से वंचित रखने की कोशिश की जा रही है।

उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ ने अपने बयान में कहा कि विदेश जाकर पढ़ाई करने की प्रवृत्ति एक “अंधी दौड़” की तरह हो गई है। उनका मानना है कि छात्र और उनके अभिभावक बिना किसी उचित मूल्यांकन के विदेश पढ़ाई करने का फैसला ले रहे हैं। उनका कहना था कि विदेश जाकर पढ़ाई करने के बाद छात्रों के भविष्य पर गंभीर असर हो सकता है, और यह विचारणीय है कि क्या विदेश में पढ़ाई वाकई में उन्हें उज्जवल भविष्य की ओर ले जाएगी।

ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपराष्ट्रपति धनकड़ का यह बयान तब आया जब उनके खुद के बच्चे भी विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं। उनकी बेटी ने अमेरिका और इंग्लैंड से पढ़ाई की है। पत्रकार शीतल पी सिंह ने उपराष्ट्रपति को इस मुद्दे पर पूरी तरह से एक्सपोज किया, यह बतलाते हुए कि उपराष्ट्रपति के परिवार के लिए तो विदेशों में पढ़ाई करना सही है, लेकिन आम भारतीय बच्चों के लिए इसे “नए रोग” के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।

कांग्रेस पार्टी ने भी इस मामले में तीखी प्रतिक्रिया दी है। कांग्रेस की नेता सुप्रिया श्रीनेत ने उपराष्ट्रपति के बयान पर प्रहार करते हुए कहा कि हर व्यक्ति को यह आजादी होनी चाहिए कि वह कहां पढ़ाई करना चाहता है। उन्होंने यह भी कहा कि उपराष्ट्रपति का बयान दोगले मापदंडों को उजागर करता है। यह सही नहीं है कि कुछ लोगों के लिए विदेश में पढ़ाई करना सही है और दूसरों के लिए गलत।

इसके अलावा, इस मामले को लेकर BJP के नेताओं पर भी सवाल उठ रहे हैं। रवि किशन, अनुराग ठाकुर, निशिकांत दुबे, शिवराज सिंह चौहान और अन्य कई नेताओं के बच्चों ने या तो विदेश में पढ़ाई की है या वहां नौकरी कर रहे हैं। सवाल यह उठता है कि अगर इन नेताओं के बच्चे विदेश में पढ़ सकते हैं, तो आम भारतीय बच्चों को ऐसा करने से क्यों रोका जा रहा है? क्या 11 सालों से सत्ता में रहने के बावजूद BJP अपने देश के शिक्षा तंत्र को इतना सक्षम नहीं बना पाई कि लोग यहां रहकर भी उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त कर सकें?

यह पूरी घटना एक बड़े सवाल को जन्म देती है – क्या देश के नेताओं के लिए एक नियम और आम जनता के लिए दूसरा नियम हो सकता है?

उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़ द्वारा भारतीय छात्रों के विदेश में पढ़ाई करने को लेकर दिया गया बयान विवादास्पद और दोगले मापदंडों का उदाहरण है। जबकि उनके अपने बच्चे विदेशों में शिक्षा प्राप्त कर चुके हैं, उन्होंने आम भारतीय छात्रों के विदेश जाकर पढ़ाई करने को एक “नया रोग” बताया। इस बयान के चलते सरकार और नेताओं की विश्वसनीयता पर सवाल उठ रहे हैं, खासकर जब उनके खुद के बच्चे विदेशों में पढ़ाई कर रहे हैं।

इसके साथ ही, यह सवाल भी उठता है कि क्यों कुछ विशेष वर्गों के लिए विदेश में पढ़ाई को स्वीकार किया जाता है, जबकि आम जनता को इसे गलत ठहराया जा रहा है। निष्कर्ष यह है कि इस मामले में नेताओं के बयानों और उनके व्यक्तिगत कार्यों में अंतर दिखाई देता है, जिससे जनता के बीच असंतोष और भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो रही है।

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