ईरान: इजराइल और फलस्तीनी संगठन हमास के बीच का तनाव अब सिर्फ एक संघर्ष से बढ़कर, मिडिल ईस्ट में बड़े युद्ध का रूप लेता जा रहा है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की आक्रामक नीतियां और हाल के हमलों के जवाब में दिए गए उनके बयानों ने इस संघर्ष को और गंभीर बना दिया है। हाल ही में हिज़बुल्लाह द्वारा नेतन्याहू के घर पर किए गए हमले के बाद उनका बयान “ईरान को नहीं छोड़ूंगा” इस बात की तरफ इशारा करता है कि नेतन्याहू इस लड़ाई को लंबा खींचना चाहते हैं। लेकिन क्या यह रणनीति सिर्फ ईरान और हमास के खात्मे के लिए है, या इसके पीछे कुछ और कारण हैं?
नेतन्याहू की राजनीति और युद्ध की भूमिका
इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कई सालों से विवादों में घिरे रहे हैं। 2019 में उनके खिलाफ एक भ्रष्टाचार कांड सामने आया था, जिसमें उन पर उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने और मीडिया में अपने पक्ष में खबरें चलवाने के आरोप लगे थे। अगर यह मामले फिर से जोर पकड़ते हैं, तो नेतन्याहू को जेल भी जाना पड़ सकता है। लेकिन जब देश युद्ध में होता है, तब इन मामलों पर उतना ध्यान नहीं जाता, और यह नेतन्याहू के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है।
यही कारण हो सकता है कि नेतन्याहू अब इस युद्ध को खत्म करने की बजाय इसे और बढ़ा रहे हैं। उनके बयान और नीतियां इस बात की तरफ इशारा करती हैं कि यह जंग उनके लिए सत्ता में बने रहने का एक साधन है।
ईरान और हमास: क्या यह संघर्ष रुकेगा?
हमास और हिज़बुल्लाह के साथ ईरान के संबंध जगजाहिर हैं। नेतन्याहू के बयान में ईरान का नाम बार-बार आना इस बात का संकेत है कि वह इस जंग को ईरान तक ले जाने के लिए तैयार हैं। हाल ही में हुए हमलों में गाजा में 40,000 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, और लेबनान में भी सैकड़ों नागरिकों की जान जा चुकी है। इसके बावजूद, नेतन्याहू का ध्यान अब ईरान पर केंद्रित हो चुका है।
ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करने की तैयारी और उसके खिलाफ बढ़ती बयानबाजी से यह साफ है कि नेतन्याहू की भूख गाजा और लेबनान से पूरी नहीं हो रही है। अब वह ईरान को निशाना बना रहे हैं, और इसके पीछे उनके अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत कारण हो सकते हैं।
क्या हमास का खात्मा संभव है?
नेतन्याहू ने हाल ही में हमास के प्रमुख यया सिनवार की हत्या की खबर को बड़ी उपलब्धि बताया था। लेकिन इतिहास गवाह है कि हमास या हिज़बुल्लाह जैसी आतंकवादी संगठनों का सिर्फ उनके नेताओं की हत्या से अंत नहीं होता। हमास की स्थापना 1987 में हुई थी, और तब से लेकर अब तक इजराइल कई बड़े नेताओं को मौत के घाट उतार चुका है। फिर भी, हमास अभी भी मजबूती से खड़ा है।
1996 में हमास के बम मेकर यया अयाश को इजराइल ने मार दिया, और 2004 में उनके संस्थापक अहमद यासीन और उनके उत्तराधिकारी अब्दुल अजीज को भी मौत के घाट उतारा गया। लेकिन इसके बावजूद, हमास का खात्मा नहीं हुआ।
यया सिनवार की हत्या के बाद भी यह संगठन खत्म नहीं हुआ है। इसके पीछे एक मुख्य कारण यह है कि इसराइल के जुल्म से आम फलस्तीनियों में नाराजगी और प्रतिशोध की भावना बढ़ती है, जो हमास को नया जीवन देती है। जिन लोगों के परिवार के सदस्य मारे जाते हैं, उनके बच्चे बड़े होकर फिर से इस लड़ाई का हिस्सा बन जाते हैं। यही वजह है कि हमास का अंत मुश्किल दिखाई देता है।
क्या नेतन्याहू जंग से बचेंगे?
नेतन्याहू की राजनीतिक स्थिति इस जंग से सीधे जुड़ी हुई है। 7 अक्टूबर 2023 को हमास द्वारा किए गए हमलों के बाद से उन्होंने इस लड़ाई को अपने राजनीतिक अस्तित्व का हिस्सा बना लिया है। गाजा और लेबनान में हुए हमलों के बावजूद, अब उनका ध्यान ईरान पर है। उनका यह बयान कि “ईरान को नहीं छोड़ूंगा”, इस बात की पुष्टि करता है कि वह इस लड़ाई को लंबा खींचना चाहते हैं।
हालांकि, इसका एक और पहलू यह भी है कि अगर यह युद्ध खत्म होता है, तो नेतन्याहू के खिलाफ चल रहे भ्रष्टाचार के मामले फिर से उभर सकते हैं, और उन्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। इसलिए, यह कहना गलत नहीं होगा कि नेतन्याहू अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत बनाए रखने के लिए इस युद्ध को जारी रखना चाहते हैं।
अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और अमेरिका की भूमिका
इस जंग में अमेरिका की भूमिका भी महत्वपूर्ण है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने ईरान पर सीधे हमले का समर्थन नहीं किया है। लेकिन अगर अमेरिका के अंदर इसराइल के खिलाफ असहमति बढ़ती है, तो नेतन्याहू के लिए स्थिति और कठिन हो सकती है। हाल ही में एक लीक रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका इस बात की जांच कर रहा है कि इसराइल द्वारा ईरान पर हमला करने की योजना लीक कैसे हुई। यह रिपोर्ट अमेरिकी प्रशासन के अंदर नेतन्याहू की नीतियों पर असहमति को दर्शाती है।
मिडिल ईस्ट का माहोल
नेतन्याहू की राजनीतिक और व्यक्तिगत स्थिति इस जंग से गहराई से जुड़ी हुई है। उनकी सरकार पर बढ़ते दबाव और उनके खिलाफ चल रहे कानूनी मामलों को देखते हुए, यह कहना मुश्किल नहीं है कि वह इस जंग को खत्म नहीं होने देना चाहते।
हमास और हिज़बुल्लाह जैसी आतंकवादी संगठनों का खात्मा सिर्फ हिंसा से संभव नहीं है, और इसके लिए एक दीर्घकालिक रणनीति की जरूरत है। लेकिन नेतन्याहू की मौजूदा रणनीति सिर्फ इस जंग को और लंबा खींचने का इशारा करती है। इसका असर न सिर्फ मिडिल ईस्ट, बल्कि पूरी दुनिया पर पड़ेगा, और यह जंग शायद एक बड़े संघर्ष का रूप ले सकती है।
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