दिल्ली दंगों का मामला: सुप्रीम कोर्ट में शरजील इमाम की सुनवाई
दिल्ली मधु कोड़ा और शरजील इमाम: आज सुप्रीम कोर्ट में दो अहम मामलों पर सुनवाई हुई। पहला मामला है शरजील इमाम का, जिन्हें दिल्ली दंगों के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। इमाम के वकील सिद्धार्थ दवे ने कोर्ट से अनुरोध किया कि उनकी जमानत याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट में जल्द सुनवाई हो, क्योंकि ये याचिका अप्रैल 2022 से लंबित है। सुप्रीम कोर्ट पहले भी कह चुका है कि जमानत का मिलना नियम है, जबकि जेल जाना अपवाद होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने निचली अदालतों द्वारा जमानत मामलों में देरी पर कई बार टिप्पणी भी की है।
मधु कोड़ा और चुनाव लड़ने का मामला
दूसरे मामले में, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा का भी मामला सुप्रीम कोर्ट में पेश हुआ। कोड़ा, जिन्हें 2017 में भ्रष्टाचार के आरोप में जेल की सजा सुनाई गई थी, ने दिल्ली हाई कोर्ट से अपनी सजा पर रोक लगाने का अनुरोध किया ताकि वे झारखंड विधानसभा चुनाव लड़ सकें। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। अब वे चुनाव नहीं लड़ पाएंगे, जबकि उनकी पत्नी गीता कोड़ा बीजेपी से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं।
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बीजेपी और भ्रष्टाचार पर विवाद
इस मामले में एक और दिलचस्प पहलू सामने आया है। गीता कोड़ा के बीजेपी में शामिल होने पर पार्टी में कोई खास बहस नहीं हुई, जबकि प्रधानमंत्री भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त रुख अपनाने का दावा करते हैं। यह मुद्दा चर्चा का विषय इसलिए बनता है क्योंकि बीजेपी एक ओर हेमंत सोरेन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाती है, वहीं दूसरी ओर, भ्रष्टाचार के आरोपी को अपने साथ जोड़ लेती है।
सुप्रीम कोर्ट के जमानत पर फैसले का असर
शरजील इमाम के मामले में सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला भी सवाल उठाता है कि एक नौजवान को अप्रैल 2022 से अब तक जमानत पर सुनवाई क्यों नहीं मिल पाई। अदालतें बार-बार कह चुकी हैं कि जमानत नियम है, लेकिन जेल में लंबे समय तक बंद रखना अनुचित है। यह देखा जा रहा है कि निचली अदालतें अक्सर जमानत याचिकाओं को लंबित रखती हैं, जिससे आरोपी को न्याय मिलने में देरी होती है।
आर्थिक स्थिति और मिडिल क्लास की मुश्किलें
इस बीच, देश की आर्थिक स्थिति पर भी ध्यान देना जरूरी है। दिवाली के सीजन में एक एफएमसीजी कंपनी के वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि मिडिल क्लास की क्रय शक्ति घट रही है। इसका असर बाजार पर भी पड़ा है। मिडिल क्लास की घटती खरीद क्षमता एक बड़ा सवाल खड़ा करती है। इस मुद्दे पर बहस की भी जरूरत है, लेकिन टेलीविजन चैनल और मीडिया अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते हैं।
धार्मिक मुद्दों का बढ़ता जोर
आज का मीडिया धार्मिक और सांप्रदायिक मुद्दों को ज्यादा महत्व देता है। हर चुनाव में इन्हीं मुद्दों को उठाया जाता है और असली मुद्दों से ध्यान भटकाया जाता है। जबकि देश में बेरोजगारी, मिडिल क्लास की समस्याएं और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर कम ध्यान दिया जा रहा है। इस स्थिति का असर यह हो रहा है कि देश के युवा नौकरी की तलाश में दूसरे देशों की ओर रुख कर रहे हैं।
मधु कोड़ा और शरजील इमाम
इन मामलों के जरिए यह स्पष्ट होता है कि चाहे कोर्ट में जमानत का मामला हो या चुनाव में भ्रष्टाचार के आरोप, न्याय और राजनीति के मुद्दे अक्सर आम नागरिकों की उम्मीदों से दूर होते हैं। हमें असली मुद्दों पर ध्यान देना होगा ताकि समाज और देश सही दिशा में आगे बढ़ सकें। उम्मीद है, आप भी इन मुद्दों पर विचार करेंगे और अपनी राय बनाएंगे।
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