गिरिराज सिंह हिंदू जगाओ यात्रा का उद्देश्य: भारत की राजनीति में धर्म के नाम पर जागरूकता अभियान और आंदोलन कोई नई बात नहीं है। हाल ही में केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने बिहार में अपनी “हिंदू जगाओ यात्रा” शुरू की, जिसका उद्देश्य हिंदू समाज को संगठित करना बताया गया। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस यात्रा का असली मकसद सिर्फ हिंदू जागरूकता है, या इसके पीछे कोई और राजनीति है?
गिरिराज सिंह ने इस यात्रा की शुरुआत भागलपुर से की और इसे किशनगंज में समाप्त किया। यात्रा के दौरान उन्होंने हिंदू समाज को एकजुट करने और संगठित करने की बात कही, लेकिन ध्यान देने वाली बात यह है कि उन्होंने केवल 81% हिंदू आबादी को ही ध्यान में रखा, जबकि बिहार की कुल जनसंख्या में 19% अन्य धर्मों के लोग शामिल हैं। सवाल यह उठता है कि यह जागरूकता यात्रा केवल एक धर्म के लोगों के लिए क्यों की गई?
जातिगत राजनीति और धर्म का संगम
बिहार की राजनीति में जाति और धर्म हमेशा एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहे हैं। 2023 में बिहार में जाति आधारित जनगणना कराई गई, जिसमें बताया गया कि राज्य की 81% आबादी हिंदू है। इस जनगणना ने एक बार फिर से जातिगत विभाजन को उजागर किया। गिरिराज सिंह ने जाति के नाम पर लोगों को संगठित करने की बजाय धार्मिक आधार पर यात्रा शुरू की, लेकिन सवाल यह है कि क्या यह यात्रा वाकई बिहार की सामाजिक समस्याओं का समाधान करेगी?
अगर वास्तव में जात-पात को मिटाने का मकसद होता, तो एक कानून के तहत अंतरजातीय विवाह को प्रोत्साहित किया जा सकता था। यह जातियों के विभाजन को मिटाने का एक ठोस कदम होता, लेकिन गिरिराज सिंह की यात्रा में ऐसा कोई प्रस्ताव सामने नहीं आया। इसके बजाय, सिर्फ धार्मिक जागरूकता पर जोर दिया गया।
बिहार की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ
बिहार एक गरीब राज्य है, जहां की 40% आबादी झोपड़ी, टिन या खपरैल की छतों के नीचे रहती है। राज्य में करीब पौने दो करोड़ लोग ऐसे हैं, जो महीने में 6000 रुपए से भी कम कमाते हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि हिंदू समाज को जगाने से क्या इनकी आर्थिक स्थिति में कोई सुधार होगा? क्या जागरूकता यात्रा के बाद इन लोगों की जिंदगी में कोई ठोस बदलाव आएगा?
यात्रा के दौरान यह भी देखा गया कि गिरिराज सिंह ने केवल कुछ खास जिलों में ही यह अभियान चलाया, जिनमें अधिकांश मुस्लिम बहुल क्षेत्र थे। इसका क्या उद्देश्य था, यह स्पष्ट नहीं हो पाया।
बिहार में एनआरसी की जरूरत?
गिरिराज सिंह ने यात्रा के दौरान बिहार के सीमांचल में एनआरसी (राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण) की बात भी छेड़ी। हालांकि असम में एनआरसी का परिणाम खास नहीं रहा, फिर भी बिहार में इस मुद्दे को उठाने से एक बार फिर से राजनीतिक उथल-पुथल का संकेत मिलता है। सवाल यह है कि क्या बिहार में एनआरसी लागू होने से राज्य की समस्याओं का समाधान होगा, या यह केवल एक राजनीतिक चाल है?
गिरिराज सिंह हिंदू जगाओ यात्रा का नतीजा
हिंदू जगाओ यात्रा केवल पांच दिनों तक चली, और इसके बाद गिरिराज सिंह दिल्ली लौट आए। लेकिन इस यात्रा का असली नतीजा क्या रहा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है। क्या हिंदू समाज वास्तव में जागरूक हुआ, या यह यात्रा केवल एक राजनीतिक प्रपंच साबित हुई?
बिहार जैसे राज्य में, जहां गरीबों की बड़ी आबादी है और बुनियादी सुविधाओं की कमी है, वहां इस तरह की धार्मिक जागरूकता यात्राओं से क्या कोई बड़ा बदलाव आ सकता है? या फिर यह सिर्फ एक और राजनीतिक खेल है, जिसे जनता के सामने एक नई रूपरेखा में पेश किया गया है?
निष्कर्ष
गिरिराज सिंह की हिंदू जगाओ यात्रा ने बिहार में एक बार फिर से धार्मिक और जातिगत राजनीति को हवा दी है। हालांकि, यह देखना बाकी है कि इस यात्रा से बिहार के हिंदू समाज में कितना जागरूकता आई और क्या यह यात्रा राज्य की वास्तविक समस्याओं का हल दे पाएगी या नहीं। बिहार की जनता को असली मुद्दों पर ध्यान देना होगा, ताकि राज्य की सामाजिक और आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
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