गाज़ा पर हो रही चुप्पी से उठे सवाल: मीडिया की भूमिका क्या है?
गाज़ा में जारी हिंसा और पत्रकारों की मौत का मामला मीडिया में ज्यादा चर्चा नहीं पा रहा है। गाज़ा पर हो रहे हमलों में अब तक 13 फिलिस्तीनी पत्रकार मारे जा चुके हैं, जिनके बारे में दावा किया गया है कि उन्हें उनकी रिपोर्टिंग के आधार पर टारगेट कर मारा गया। इन पत्रकारों ने बिना किसी सुरक्षा गियर के गाजा में बेहद खतरनाक हालात में काम किया। उनका प्रयास था कि वह सब कुछ दुनिया के सामने लाएं जिसे इसराइल छिपाने की कोशिश कर रहा था। इस संघर्ष में दो इसराइली और तीन लेबनानी पत्रकारों की भी जान जा चुकी है।
हालांकि बड़े अखबारों में गाज़ा को लेकर ज्यादा रिपोर्टिंग नहीं दिखती, लेकिन नेताओं के बयान और एक्सपर्ट्स के विश्लेषण खूब देखने को मिलते हैं। मगर गाज़ा के लोगों की तकलीफों को अक्सर छोटे-छोटे नंबरों में बदलकर उनके दर्द को हल्का कर दिया जाता है। हाल ही में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा कि अगर मध्य पूर्व में शांति लानी है तो गाज़ा में युद्ध रोकना होगा। ईरान के राष्ट्रपति से मुलाकात के दौरान उन्होंने यह बयान दिया।
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इसी बीच, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी ईरान के राष्ट्रपति से मुलाकात की और भारत-ईरान संबंधों पर बात की। इन सभी बड़े नेताओं के बयान अखबारों की सुर्खियां बनते हैं, लेकिन गाज़ा के लोगों की आवाज़ कहीं खो जाती है।
अमेरिकी विदेश विभाग के सचिव एंटोनी ब्लिंकन ने भी एक साल में 11 बार मध्य पूर्व की यात्राएं की हैं। हाल ही में उन्होंने इसराइली प्रधानमंत्री नेतन्याहू से युद्धविराम की बात की, लेकिन इसके आसार नज़र नहीं आते। गाज़ा की स्थिति को लेकर जानकारी का गहरा अभाव दिख रहा है। जिस सूचनाओं की जरूरत है, वे पत्रकारों की मौत और मानवीय संकट से जुड़ी हुई हैं।
अमेरिकी सांसदों ने राष्ट्रपति बाइडन से मांग की है कि गाज़ा में मीडिया को जाने की अनुमति दी जाए, ताकि वहां की सच्ची तस्वीर सामने आ सके। लेकिन, इस मांग का भी असर दिखाई नहीं दे रहा। ‘कमेटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स’ और 18 अन्य संगठनों ने अमेरिकी सांसदों की इस मांग का समर्थन किया है। इसके बावजूद गाज़ा में स्वतंत्र मीडिया की पहुंच अब भी बाधित है।
इसराइल ने कतर के टीवी चैनल अलजजीरा पर गंभीर आरोप लगाए हैं, जिसमें कहा गया है कि अलजजीरा के छह पत्रकार हमास और इस्लामिक जिहाद के आतंकियों के रूप में उजागर हुए हैं। इसराइल ने इन पत्रकारों की तस्वीरें और दस्तावेज़ जारी किए हैं, जिनमें दावा किया गया है कि इनका संबंध आतंकी संगठनों से है। हालांकि, अलजजीरा ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।
गाज़ा के मानवीय संकट पर रिपोर्टिंग करना खतरनाक होता जा रहा है। कई पत्रकारों का कहना है कि इसराइल जानबूझकर पत्रकारों को निशाना बना रहा है ताकि सच्चाई दुनिया तक न पहुंचे।
संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार, गाज़ा पर हो रहे हमलों के कारण वहां 75,000 टन से अधिक बम गिराए जा चुके हैं, जिससे 42 मिलियन टन मलबा जमा हो गया है। गाज़ा की बर्बाद हो चुकी अर्थव्यवस्था को 2023 के स्तर पर लौटने में 350 साल का समय लग सकता है, बशर्ते युद्ध कल ही खत्म हो जाए। यह स्थिति इस बात को दर्शाती है कि गाजा के लोग आने वाले कई दशकों तक पुनर्निर्माण और स्थायित्व की राह में संघर्ष करते रहेंगे।
गाज़ा के लोगों की स्थिति इतनी भयावह है कि वहां खाने-पीने की चीजें, दवाइयां और पानी की भारी कमी हो गई है। उत्तरी गाज़ा में स्थिति और भी गंभीर है, जहां हर तरफ लाशें पड़ी हैं और लोगों के पास बचने की कोई उम्मीद नहीं बची है।
यूएन के अधिकारियों ने कहा है कि गाजा में हालात सुधरने के बजाय और बिगड़ते जा रहे हैं। अलजजीरा के मुताबिक, गाज़ा में कुपोषण और बीमारी का प्रकोप लगातार बढ़ रहा है, जिसके कारण बच्चों और महिलाओं की हालत बेहद दयनीय है। हालात इतने खराब हो चुके हैं कि जन्म लेने वाले बच्चे भी कुपोषण के शिकार हो रहे हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन हालात को लेकर आवाज़ उठाई जा रही है, लेकिन फिलहाल इसराइल और हमास के बीच संघर्ष के थमने के कोई संकेत नहीं हैं। गाजा के लोगों की कहानी मीडिया और बड़ी ताकतों के बीच कहीं खो गई है।
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