लंदन: बीबीसी के 100 से अधिक पत्रकारों ने अपने ही संस्थान के खिलाफ आवाज़ उठाई है। उनका मानना है कि बीबीसी इसराइल-फिलिस्तीन विवाद को कवर करते समय निष्पक्षता का ध्यान नहीं रख रहा है। गज़ा पर इसराइल के हमलों की कवरेज को लेकर इन पत्रकारों ने बीबीसी को पत्र लिखकर सटीक और संतुलित रिपोर्टिंग की मांग की है। इन पत्रकारों के अनुसार, इसराइल और गज़ा की घटनाओं को रिपोर्ट करने के मामले में बीबीसी का रुख संतुलित नहीं है, और इसकी वजह से जनता को एकतरफा जानकारी मिल रही है।
पत्रकारों की शिकायत: बीबीसी की कवरेज में संतुलन की कमी
पत्रकारों का आरोप है कि बीबीसी की रिपोर्टिंग में इसराइल के प्रति झुकाव देखा जा रहा है, जिससे गज़ा में हो रही त्रासदी को उचित तरीके से प्रस्तुत नहीं किया जा रहा। बीबीसी के इस कवरेज को लेकर आलोचना लगातार बढ़ रही है। दुनिया भर में कई मीडिया संस्थानों ने भी बीबीसी की रिपोर्टिंग पर सवाल उठाए हैं, और इसके खिलाफ पत्र लिखने वालों में इतिहासकार, अभिनेता, और अन्य लोग भी शामिल हैं।
पत्रकारों का कहना है कि बीबीसी के रिपोर्ट्स में केवल हमास के हमलों को प्रमुखता से दिखाया जा रहा है, जबकि इसराइल के हमलों में हो रही निर्दोष नागरिकों की मौत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जा रहा। यह आलोचना न सिर्फ बीबीसी, बल्कि न्यूयॉर्क टाइम्स जैसे बड़े मीडिया संस्थानों के खिलाफ भी हो रही है।
अपडेटअन्य जानकारी – सलमान खान को मिली नई धमकी: Sikandar (2025) फिल्म और बिग बॉस की शूटिंग के दौरान
बीबीसी का जवाब और पत्रकारों की अपील
पत्रकारों का कहना है कि बीबीसी को गज़ा में हो रहे घटनाक्रम को जनता के सामने निष्पक्षता से रखना चाहिए। बीबीसी के प्रवक्ता ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि वे निष्पक्ष रिपोर्टिंग का पालन कर रहे हैं। हालांकि, पत्रकारों का मानना है कि बीबीसी को अपने संपादकीय नीति में बदलाव लाकर निष्पक्ष रिपोर्टिंग करनी चाहिए।
पत्रकारों ने बीबीसी के शीर्ष अधिकारियों को पत्र लिखा है, जिसमें उन्होंने गज़ा के खिलाफ इसराइल की बमबारी को संतुलित तरीके से पेश करने की अपील की है। उनका कहना है कि जब भी इसराइल से जुड़े मामलों को रिपोर्ट किया जाता है, तो हर मुद्दे को सटीक और गहराई से जांच कर प्रस्तुत करना चाहिए, ताकि जनता को एक सही तस्वीर मिल सके।
दूरदर्शन से तुलना: क्या भारतीय मीडिया भी कर सकता है ऐसा?
भारत में दूरदर्शन और प्रसार भारती जैसी संस्थाएं सरकार के अधीन काम करती हैं, और ये भी जनता के टैक्स के पैसे से चलती हैं। न्यूज़लॉन्ड्री की एक रिपोर्ट के अनुसार, दूरदर्शन के प्राइम टाइम में जनता से जुड़े मुद्दों पर चर्चा कम होती है। रिपोर्ट में बताया गया है कि 42 एपिसोड्स में से केवल दो में ही जनहित की बात की गई है। यह एक गंभीर मुद्दा है, क्योंकि दूरदर्शन का मकसद जनता की समस्याओं को सामने लाना है, लेकिन इसके प्रोग्राम अक्सर विपक्षी पार्टियों के खिलाफ होते हैं।
बीबीसी में तो पत्रकारों ने अपने ही संस्थान को पत्र लिखकर निष्पक्षता की मांग कर दी, लेकिन क्या भारत में दूरदर्शन या प्रसार भारती के पत्रकार इस तरह की आवाज़ उठा सकते हैं? भारत में पत्रकारिता की स्थिति को देखते हुए, ऐसा लग रहा है कि यहां ऐसा करना कठिन है।
दुनिया भर के मीडिया पर सवाल
यह सिर्फ बीबीसी तक सीमित नहीं है। दुनियाभर के कई मीडिया संस्थानों में इसराइल-फिलिस्तीन कवरेज को लेकर कई बार सवाल उठाए जाते हैं। अलजज़ीरा ने पहले भी बीबीसी की कवरेज पर सवाल उठाए थे और रिपोर्ट्स में बताया था कि कैसे इसराइल-फिलिस्तीन विवाद को संतुलित तरीके से कवर नहीं किया जा रहा।
वाशिंगटन स्थित एक इतिहासकार एस.एल. रेड का मानना है कि कई बार न्यूयॉर्क टाइम्स और बीबीसी जैसे बड़े मीडिया संस्थानों की हेडलाइंस में इसराइल की कार्रवाई को कम करके दिखाया जाता है, जबकि हमास के किसी भी हमले को प्रमुखता से प्रकाशित किया जाता है। रेड अपने सोशल मीडिया पर लगातार इस तरह की हेडलाइंस का विश्लेषण करती हैं और उनके प्रभाव को दिखाने का प्रयास करती हैं।
इसराइली अखबार हारेट्स और उसकी रिपोर्टिंग
इसराइल का हारेट्स अखबार इस मुद्दे पर अपनी निष्पक्षता के लिए चर्चा में है। उन्होंने हाल ही में लिखा कि अगर इसराइल के हमलों को नरसंहार कहा जा रहा है, तो इसे अनदेखा नहीं किया जाना चाहिए। हारेट्स का यह संपादकीय इसराइली सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना करता है। हारेट्स का मानना है कि गज़ा में हो रही मौतें और तबाही गंभीर चिंता का विषय हैं, और इसे रोकने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिए।
हालांकि, हारेट्स को भी इसराइली सरकार की ओर से दबाव का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने अखबार को धमकी दी है कि जो भी इसराइल की नीतियों की आलोचना करेगा, उसे सजा दी जाएगी। इसके बावजूद, हारेट्स ने अपने संपादकीय में इसराइल के हमलों को साफ तौर पर नरसंहार के रूप में लिखा है, जो दुनिया भर में एक साहसी कदम माना जा रहा है।
मीडिया की निष्पक्षता और उसके प्रभाव
आज के दौर में मीडिया का मकसद केवल खबर देना नहीं रह गया है, बल्कि यह तय करना भी है कि खबर कैसे दी जाए और इसे किस तरह से प्रस्तुत किया जाए। मीडिया जनता के विचारों को प्रभावित करता है, और इसके माध्यम से समाज के अलग-अलग वर्गों में चेतना और जागरूकता फैलाई जाती है।
दुनिया के कई देशों में यह माना जा रहा है कि मीडिया की भूमिका बदल रही है, और वह निष्पक्षता को छोड़कर किसी एक पक्ष की ओर झुकाव दिखाने लगी है। इसका असर जनता की सोच पर भी पड़ता है और समाज में एकतरफा विचारधारा का प्रसार हो सकता है।
निष्कर्ष: निष्पक्षता का महत्व
बीबीसी के पत्रकारों का यह कदम एक साहसिक पहल है, जिसमें उन्होंने अपने ही संस्थान की नीतियों पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि अगर मीडिया निष्पक्षता का पालन नहीं करता है, तो इसका प्रभाव समाज पर गंभीर हो सकता है।
भारत सहित दुनिया भर के देशों में मीडिया को जनता के हित में काम करना चाहिए और निष्पक्षता बनाए रखनी चाहिए। इससे न केवल जनता को सही जानकारी मिलती है, बल्कि समाज में आपसी समझ और भाईचारे को भी बढ़ावा मिलता है।
अपडेटअन्य जानकारी – अखिलेश यादव का नया नारा “जुड़ेंगे तो जीतेंगे”: भाजपा की राजनीति पर तगड़ा जवाब