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हरियाणा में चुनावी माहौल: अशोक तंवर का तेज दलबदल Breaking News

अशोक तंवर का बीजेपी से कांग्रेस में जाना: हरियाणा चुनावी समीकरणों में नई हलचल

Tafseel Ahmad
6 Min Read
हरियाणा में चुनावी माहौल
Highlights
  • अशोक तंवर का तेज दलबदल – बीजेपी छोड़ कांग्रेस में वापसी, चुनावी समीकरणों पर असर।
  • बीजेपी के लिए बड़ा झटका – पूर्व सांसद और वरिष्ठ दलित नेता का कांग्रेस में शामिल होना।
  • हरियाणा चुनाव का नया मोड़ – चुनाव से एक दिन पहले तंवर का दलबदल।
  • राहुल गांधी के साथ मंच साझा – अशोक तंवर ने महेंद्रगढ़ में कांग्रेस की सभा में की शिरकत।

हरियाणा में चुनावी माहौल उस समय राजनीतिक हलचल बढ़ गई जब भाजपा नेता अशोक तंवर दोपहर में भाजपा उम्मीदवार राम कुमार गौतम के लिए प्रचार करने पहुंचे और कुछ ही घंटों में कांग्रेस में शामिल हो गए। यह घटना इसलिए चौंकाने वाली है क्योंकि तंवर एक ही दिन में सफीदों से महेंद्रगढ़ पहुंचे और कांग्रेस में शामिल हो गए।

तंवर का सफर इतना तेज कैसे हुआ? इसका रहस्य अंबाला-नारनौल हाईवे है, जिसे 152-D के नाम से भी जाना जाता है। इस नए हाईवे से अंबाला से महेंद्रगढ़ तक का सफर सिर्फ ढाई घंटे से भी कम में हो जाता है, जिससे तंवर ने सफीदों से महेंद्रगढ़ की दूरी बड़ी तेजी से तय की।

अशोक तंवर का बड़ा कदम बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल

ईडी (Enforcement Directorate) का डर अक्सर नेताओं को बीजेपी में खींच लाता है। लेकिन अशोक तंवर का बिना किसी दबाव के कांग्रेस में वापसी करना बड़ा सवाल खड़ा करता है। क्या इसके पीछे कांग्रेस की रणनीति है, या फिर कुछ और?

क्या तंवर का दलबदल: कांग्रेस और बीजेपी के लिए चुनौती

बीजेपी को झटका देते हुए अशोक तंवर ने आखिरी दिन पार्टी छोड़ दी, जिससे प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के बड़े नेता भी हैरान रह गए होंगे। कांग्रेस ने तंवर के पार्टी में शामिल होने पर उनका जोरदार स्वागत किया। हरियाणा कांग्रेस के ट्विटर हैंडल पर एक वीडियो के साथ लिखा गया, “गुड इवनिंग, मनोहर लाल जी” — जो साफ तौर पर बीजेपी पर तंज कस रहा था।

2019 और 2024: अशोक तंवर का राजनीतिक सफर

अशोक तंवर का कांग्रेस से बीजेपी में जाना और फिर वापस कांग्रेस में लौटना राजनीतिक रूप से बेहद दिलचस्प है। 2019 में, जब तंवर ने कांग्रेस से इस्तीफा दिया था, तो बीजेपी ने इसे बड़ा मुद्दा बनाया था। बीजेपी ने कहा था कि कांग्रेस में दलित नेताओं का सम्मान नहीं होता, और यह अशोक तंवर के इस्तीफे का प्रमुख कारण था।

लेकिन 2024 के विधानसभा चुनावों के ठीक पहले अशोक तंवर का कांग्रेस में लौटना इस पूरी कहानी को पलट देता है। यह सवाल उठता है कि क्या बीजेपी अब भी अपने पुराने दावे पर कायम रहेगी, या फिर कांग्रेस में दलित नेताओं के लिए सम्मान बढ़ा है?

हरियाणा में चुनावी माहौल, क्या 2024 के चुनावी दांव-पेंच

अशोक तंवर का कांग्रेस में लौटना हरियाणा के चुनावों में कांग्रेस के लिए एक मास्टरस्ट्रोक साबित हो सकता है। बीजेपी पहले ही दलित वोटों को लेकर चिंता में थी, और अब तंवर की वापसी से कांग्रेस इस वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश कर रही है।

क्या है राहुल गांधी का मास्टरस्ट्रोक

अशोक तंवर की कांग्रेस में वापसी को राहुल गांधी के लिए एक महत्वपूर्ण राजनीतिक उपलब्धि माना जा रहा है। अशोक तंवर राहुल गांधी के पुराने सहयोगी रहे हैं। 2003 से 2005 तक उन्होंने एनएसयूआई के अध्यक्ष के रूप में काम किया और उसके बाद युवा कांग्रेस के अध्यक्ष भी बने। अशोक तंवर को कांग्रेस का उभरता हुआ चेहरा माना जाता था, और उनकी वापसी से कांग्रेस को एक नया संजीवनी मिल सकती है।

दलित वोट बैंक की लड़ाई

कांग्रेस इस बार हरियाणा के चुनावों में दलित वोट बैंक को लेकर बेहद सतर्क है। अशोक तंवर की वापसी से कांग्रेस ने दलित समुदाय के नेताओं को एकजुट करने की कोशिश की है। कुमारी शैलजा, अशोक तंवर, और अब चौधरी उदय भान—तीनों दलित नेता रह चुके हैं।

बीजेपी की चुनौतियां: मोदी फैक्टर की कमी?

बीजेपी के लिए इस चुनाव में एक और समस्या उभर कर सामने आई है—मोदी फैक्टर का असर । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इस बार हरियाणा में ज्यादा रैलियाँ नहीं हुईं, जिससे पार्टी के कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी महसूस की जा रही है। जबकि मनोहर लाल खट्टर, जो 9 साल तक हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे, उन्हें भी जनता के बीच प्रचार के लिए ज्यादा नहीं लाया गया है।

अशोक तंवर की वापसी के बाद बीजेपी को अब चुनावों में एक नई रणनीति बनानी होगी, क्योंकि कांग्रेस इस बार पूरी तरह से तैयार नजर आ रही है।

हरियाणा के चुनावों में अब दलित वोट बैंक पर कांग्रेस-बीजेपी के बीच की सीधी टक्कर ने सियासी माहौल को गरमा दिया है।

अशोक तंवर के इस दलबदल ने हरियाणा के राजनीतिक में एक नई हलचल पैदा कर दी है। कांग्रेस ने तंवर के वापसी को एक मास्टरस्ट्रोक के रूप में पेश किया है, जबकि बीजेपी को अब अपने पुराने दावों और रणनीतियों पर फिर से विचार करना होगा।

अब देखना यह होगा कि 5 अक्टूबर को होने वाले मतदान में जनता किसे अपना समर्थन देती है, और 8 अक्टूबर को जब नतीजे आएंगे, तब इस दलबदल का असल असर सामने आएगा।

Ravish Kumar Official

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